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सन्तानोत्पत्ति यज्ञ : ऋषियों ने मनुष्य के जीवन में सोलह संस्कारों का विधान किया है। इन संस्कारों के द्वारा पाप रूप कर्मों का क्षय तथा अन्तःकरण शुद्ध होता है। शुद्ध एवं पवित्र अन्तःकरणों का प्रभाव अपने संतति पर विशेष रूप से पड़ता है, जिससे बालक शुभ संस्कारों से युक्त होकर, सेवाभाव से युक्त होकर गुणवान, तेजस्वी, ओजस्वी, बुद्धिमान, वीर्यवान् एवं मेधावी बनता है। ‘सन्तानोत्पत्ति यज्ञ’ का प्रभाव विशेष रूप से दोनों अवस्थाओं में होता है। जो स्त्री मातृत्व सुख से वंचित रह जाती है, उसे समाज में अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। संतानविहिन जीवन अति दुःखदायी होता है, इसलिए ऋषियों ने प्राचीन काल में ही सन्तानोत्पत्ति की विधि को प्रतिपादित कर दिया था, जिससे अनेक संतानविहिन स्त्रियाँ मातृत्व सुख को प्राप्त हुई हैं। ऐसे अनेकों उदाहरण हमें देखने को मिलते हैं। राजा दशरथ को पुत्रेष्टि यज्ञ के द्वारा चार पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी, जो सन्तानोत्पत्ति यज्ञ का महान उदाहरण है। वास्तव में मातृत्व सुख प्राप्त करने के लिए सन्तानोत्पत्ति यज्ञ विशेष रूप से फलदायी होता है। विशेष भूमि पर अवस्थित होकर पूर्ण एकाग्रता एवं सद्भावना के साथ वैदिक मंत्रों का प्रयोग इस यज्ञ में किया जाता है। इस यज्ञ में विशेष रूप से वंशलोचन, शिवलिंगी, अश्वगंधा, वच आदि औषधियों का प्रयोग किया जाता है। शारीरिक दशा में कोई कमी होने पर उस पर भी विशेषज्ञों के द्वारा परामर्श दिया जाता है साथ ही साथ ईश्वर से विशेष रूप से वैदिक मंत्रों के माध्यम से प्रार्थना किया जाता है, जिससे शीघ्र ही सफलता मिलने की सम्भावना बनती है।