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प्रेत बाधा निवारण यज्ञ : शुभाशुभ कर्मानुसार व्यक्ति को जीवन में कर्म-फलों की प्राप्ति करनी पड़ती है। मृत्यु पश्चात् जीवात्मा अपने कर्माशय फलों के परिणाम स्वरूप शरीर धारण करता है। कुछ ऐसी आत्मायें होती हैं जिनकों शरीर मिलने में देरी होती है, अथवा प्रेत रूप योनि में भटकते रहती हैं। इसी क्रम में उनके अन्दर अपना कल्याण एवं शान्ति की प्रबल इच्छा रहती है। प्रेत-योनि में कुछ दुष्ट आत्मायें भी होती हैं जो अनिष्टकारक होती हैं, जिनसे व्यक्ति भयभीत होता रहता है। इस पे्रत बाधा से निवारण हेतु अथवा शुद्ध पवित्र आत्माओं की सद्गति हेतु यह ‘प्रेत-बाधा-निवारण-यज्ञ’ दोनों अवस्थाओं में लाभप्रद होता हैं। अनिष्टकारक आत्माओं से छुटकारा प्राप्त करने हेतु यह यज्ञ विशेष रूप से सहायक बनता है। इस यज्ञ में वेद के ऐसे मंत्रों को लिया जाता है, जिसमें परमात्मा से पे्रतादि बाधाओं से छुटकारा पाने के लिए कारगर सिद्ध होता है। इस यज्ञ से मानसिक शान्ति मिलती है एवं नकारात्मक छाया के प्रभाव से भी दूर होने लगते हैं। वेद के मंत्रों में अद्भुत शक्ति छिपी हुई है। विशेष भूमि में अवस्थित होकर वैदिक मंत्रों के माध्यम से यज्ञ करने से इस पे्रत-बाधा में लाभ मिलता है। इस यज्ञ से पुण्यात्मा को उत्तम लोक की प्राप्ति होने की अधिक सम्भावना बनती है। मन्त्रोंच्चारण के प्रभाव से नकारात्मक छाया दूर होने लगता है एवं वातावरण की शुद्धता बढ़ने लगती है तथा अन्तःकरण भी पवित्र होने लगता है। ऐसे महान यज्ञ रूपी सत्कर्म करने से यजमान को विशेष रूप से लाभ प्राप्त होता है।